Tuesday, November 03, 2015

बूंद टपकी एक नभ से

बूंद टपकी एक नभ से
किसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हंस दिया हो।
हंस रही-सी आंख ने जैसे...
किसी को कस दिया हो।

ठगा सा कोई किसी की
आंख देखे रह गया हो।
उस बहुत से रूप को
रोमांच रोके सह गया हो।

--भवानीप्रसाद मिश्र

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