Sunday, November 29, 2015

अरे बउआ ई गोड़ सब पिरात हैं


आज सुबह फैक्ट्री जाते हुए ये माता जी मिलीं पुलिया के पास। सर पर मोमिया का झोला धरे हाथ डुलाती हुई चली आ रही थी। हमने चलते हुए फोटो लिया और बतियाने लगे- 'कहां चली जा रही हो सबेरे-सबेरे सर पर झोला धरे।'
 
'अरे कहूँ नहीं भैया-ऐसे ही कूड़ा-कचरा से कुछ बिनि लेइति है तौ दुई पैसा मिलि जात हैं '- माता जी ने आँख मिचमिचाते हुए कहा।
 
खड़े हुये बात करने लगे माता जी से तो उन्होंने बताया- 'तीन लड़के हैं। तीनों कुछ मजूरी का काम करते हैं। लेकिन पैसा दारु और घर में उड़ा देते हैं। बहुएं कहती हैं बूढ़ा माता से कि तुम खुद कमाओ खाओ। इसीलिये कूड़ा बिनती हैं वो। कभी कोई चाय पिला देता है। नाश्ता करा देता है। दुई चार दस रुपया दे देता है।'
 
आदमी काफी पहले खत्म हो गया माताजी का।वो भी नशा पत्ती करता था। गांजा पीता था। ठेकेदारों के यहां काम करने वालों को दारू, गांजा के नशे होना तो आम बात है।

हमने कहा-'लेकिन तुम तो लगता नहीं कि नशा करती हो। क्या करती हो कुछ नशा? दारु, गांजा, तम्बाकू?'
माता जी बड़ी तेजी से हंसी यह सुनकर। ऊपर के पूरे दांत लगभग सलामत थे पर मसूड़े से 45 डिग्री का कोण सा बनाते हुए बाहर झांक रहे थे। नीचे के सामने के दांत गायब थे। बोलीं--'अरे हम न कोई नशा करती।'
हमने पूछा-'कित्ते पैसे मिल जाते हैं रोज कूड़ा बीनने से? कल कित्ते मिले?'


'अरे कुछ तय नहीं। कल कूड़ा बीने ही नहीं। कभी लकड़ी बीन लेते हैं घर के लिए। कभी कूड़ा। कभी कुछ मिल जाता है कभी कुछ।'--जानकारी देते हुए बताया माता जी।

उम्र के बारे में पूछते हुए बताया--'अरे होइ यहै कौनौ 60-65 साल।' नाम बताया- ' मुन्नी बाई।'

हमने कहा-'अरे वाह मुन्नी देवी तो हमारी अम्मा का नाम भी था। अब वो रहीं नहीं।'

'अरे नहीं रहीं? अच्छा हुआ बुढ़ापे में कढिलें (झेलने) ते बढ़िया चली गयीं तुम्हारी अम्मा। बप्पा होइहैं ?' -बुढ़िया माता जी ने पूछा।

'हमने बताया न नहीं रहे वो भी। लेकिन तुम ऐसा दुखी काहे होती हौ। बढ़िया टनाटन तौ है तुम्हार शरीर। दांत बचे हैं। चल फिर लेती हौ। और का चहिये तुमको बुढ़ापे माँ।'- हमने अनौपचारिक होते हुए कहा।

'अरे बउआ ई गोड़ सब पिरात हैं। घुटनन के मारे चलत नहीं बनत। आँखिन ते कम दिखात है। दांत सब हिलत हैं। बस कौनिउ तरन से घसिटि रही है जिंदगी।'- माता जी बोलीं।


लालमाटी इलाके में रहती हैं माताजी। बोली -'सुबह से केवल चाय पी है। कुछ खाया नहीं है।'

हमने जेब में आज आखिरी बचा दस का नोट निकाला और पूछा-' ये कित्ते रूपये का नोट है?' वो बोली-' दस रुपया का है।'

हमने कहा-' तुम तो कह रही थी कि तुम पढ़ी-लिखी नहीं हौ। फिर नोट कैसे पहचान गयीं।'

'अरे नोट देखित है तौ पहचान लेइत है।'-बूढा माता उवाची।

'20 का नोट पहचान लेती हो?' - हमने पूछा।

वो बोली -' हाँ।'

'पचास का?'

'हाँ'

'100 का?'

'हाँ।'

'500 का?'




हमने यह पूछा तो वो हंसने लगी। हमें भी हंसी आ गयी। हमें बिहार की चुनाव सभाओं में पैकेज की घोषणा करते हुए प्रधानमन्त्री जी का अंदाज याद आ गया और हमने शर्मा कर आगे पूछना छोड़ दिया। 10 का नोट माता जी के हवाले कर दिया।

पैसे पाकर माता जी खिल सी गयीं। पूछा-'बेटवा/पतोहू हुईहै तुम्हार?'

हमने कहा-'हां पत्नी हैं। दो बेटे हैं।'

जियत रहैं। ख़ुशी रहें। कहती हुई चलने लगी माता जी तो हमने कहा -'अच्छा, एक फोटो और खिंचा लेव। जरा मुस्कराते हुए।'

माता जी ने पोज दिया। हमने फोटो खींचा। उनके हाथ की झुर्रियां देखकर अपनी अम्मा के हाथ याद आ गए। मन किया उनके गाल नोच लें जैसे अम्मा के करते थे। हाथ आगे किया भी लेकिन फिर कंधे पर धरकर वापस कर लिया।

फिर दोनों लोग अपने-अपने रस्ते चले गए।

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