Wednesday, December 02, 2015

चले कहाँ हो तुम मेरी धड़कने बढ़ा के

चले कहाँ हो तुम
मेरी धड़कने बढ़ा के

हम चाय की दुकान पर बैठकर चाय पी ही रहे थे कि ये वाला गाना बजने लगा। हमें लगा कि हम तो अभी आये ही हैं लेकिन यह हमारे जाने की बात कौन करने लगा। यह सोचकर गुदगदी होने ही वाली थी कि हमारे कहीं से चलने पर किसी की धड़कने बढ़ सकती हैं लेकिन ऐन मौके पर रुक गयीं। खतरा टल गया।
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दुकान पर एक आदमी एक व्हील चेयर पर बैठे आदमी से बतिया रहा था। चाय वाला भी उसमें बिना निमन्त्रण शामिल हो गया। बात करते हुए तीनों लोग माँ, बहन और भो घराने की गालियां देते जा रहे थे। बातों में गालियों की मात्रा सुनकर यह तय करना मुश्किल सा लगा कि ये लोग गाली-गलौज के लिए बातचीत कर रहे हैं या फिर बातचीत के लिए गाली-गलौज।

यह सवाल कुछ ऐसा ही था जैसे कोई यह जानने की कोशिश करे कि देश में विकास के नाम पर भ्रष्टाचार हो रहा है या भ्रष्टाचार के नाम पर विकास।

हम कुछ तय कर पाते तब तक अगला गाना बजने लगा पर वह हमको ठीक से सुनाई नहीं दिया क्योंकि चायवाला अपने ग्राहक से किसी बात पर बहस करते हुए तेज-तेज बतियाता रहा। वह क्या कह रहा था यह तो नहीं समझ में आया लेकिन बीच-बीच में जोर-जोर से यह बोलता जा रहा था कि जिसके भाग्य में जो लिखा है वह मिलकर रहेगा।

दस फ़ीट की दूरी से रेडियो से चली हुई आवाज जब बीच में खड़े लोगों के हल्ले- गुल्ले के चलते हम तक नहीं पहुंची तो हमको कुछ-कुछ यह समझ में आया कि दिल्ली से चली हुई योजनाएं बांदा, बस्तर, बलिया तक क्यों नहीं पहुंच पातीं। बीच के लोग उनको डिस्टर्ब कर देते होंगे।

सुबह जब निकले साइकिल से तो उजाला कम था। एक महिला सरपट तेजी से टहलती दिखी। उसके पीछे एक जोड़ा खरामा-खरामा टहल रहा था।

दो महिलाएं सड़क पर टहलती हुई दिखीं। दोनों शॉल ओढ़े हुए थीं। ध्यान से देखा तो एक महिला एक हाथ में माला थामे हुई थीं। माला हिडेन एजेण्डा की तरह थी। जितनी तेजी से वह टहल रही थी उससे भी तेजी से माला फेरती जा रही थी।

एक आदमी एक टपरे के पास बैठा शीशे में अपना मुंह देख रहा था।

चाय की दुकान पर अगला गाना बजने लगा-

'किसने छीना है बोलो मेरे चाँद को'

आदमी की यह आवाज सुनकर लगा कि जैसे ही उसे पता चलेगा कि उसके चाँद को किसने छीना है वैसे ही वह पास के थाने में जाकर चाँद के छीने जाने की रिपोर्ट लिखायेगा या फिर किसी टेंट हाउस से किराये पर माइक लेकर किसी चौराहे पर हल्ला मचाते हुए भाइयों और बहनों को बताएगा।

लेकिन नायिका देश की जनता की तरह समझदार निकली और उसने जबाब दिया:

'कौन छीनेगा तुझसे मेरे चाँद को'

नायिका की बात सुनकर एक बार फिर से लगा कि महिलाओं की सहज बुद्धि शानदार होती है।

दूसरी दुकान की भट्टियां जल नहीं रहीं थी। उसके आसपास किसी चुनाव हारी पार्टी के कार्यालय जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था। आज शायद दुकान बन्द थी।

अगला गाना बजने लगा:

'सारा प्यार तुम्हारा मैंने बाँध है आँचल में
तेरे नए रूप की नयी अदा हम देखा करेंगे पलपल में'

मतलब प्यार न हो गया आदमी का जीपीएस हो गया। प्यार न हुआ मानों सीसीटीवी कैमरा हो गया। इधर प्यार बंधा और उधर अदाएं दिखने लगीं। प्यार भी बाँधा तो इसलिए कि नए रूप की अदाएं दिखतीं रहें। मान लो कोई पुराने रूप की अदाएं दिखाना चाहे तो क्या आँख मूँद लोगे भाई?

यह भी लगा कि गाने में आँचल में प्यार बाँधने की बात कही गयी है। यह बात तब की है जब आँचल हुए करते थे। अब मान लो कोई जीन्स टॉप में हो तो कहां बंधेगा प्यार? जेब में धरने की सुविधा भी होनी चाहिए। या अब तो जमाने के हिसाब से मोबाईल में व्हाट्सऐप से भेजने का जुगाड़ होना चाहिए। मल्लब समय के हिसाब से सब होना मांगता भाई।

मेस के पास एक बालिका साईकल पर स्कूल जा रही थी। साथ में एक बालक मोटर साइकिल चलाते हुए बालिका से बतियाता जा रहा था। बालिका उसको मम्मी की कही कोई बात -'मेरी मम्मी कह रही थी' कहते हुए बता रही थी। बालक चातक की तरह चाँद के चहरे को देखते हुए बालिका की मम्मी की कही बात बालिका के मुंह से सुन रहा था।

टीवी पर चेन्नई की बारिश के सीन दिखाई दे रहे हैं। कानपुर से घरैतिन का फोन आया कि वहां बहुत तेज बारिश हुई रात को।लेकिन स्कूल जाना है आज। हम ऑटो वाले को फोन पर सूचना देते हुए यह शेर पढ़ रहे हैं:

तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह
कि भीग तो पूरा गए,पर हौसला बना रहा।

सूरज भाई वाह-वाह करते हुए आसमान में चमक रहे हैं। चिड़ियाँ भी चिंचियाते हुए सुबह होने की घोषणा कर रही हैं। सुबह सच में हो गयी है। सुहानी भी है।

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