Monday, January 18, 2016

हंसने के लिये किसी भाषा की दरकार नहीं होती

सुबह अलार्म बजा तो जगे। घर फ़ोन करने के लिये नम्बर मिलाने की कोशिश किये तो पता चला नेटवर्क गोल। बाहर निकले। फ़ोन किया और टहलने निकल लिये।

शर्ट और घुटन्ना धारण किये हुये ही बाहर निकल आये थे। सर्दी नहीं लग रही। कल रात जब उतरे थे जहाज से तो तापमान 28 डिग्री बताया गया था।

सुबह के छह बजे ऊंघ रहा है गोवा। बल्कि सोया हुआ है। सडक पर केवल कुत्ते, होटलों के दरबान और हम जैसे लोग टहल रहे हैं। कुछ पक्षी आपस में एक दूसरे को गुडमार्निंग कर रहे हैं। बीच बीच में कोई गाड़ी सुबह की शांति को कुचलकर निकल जाती है।

एक नाले के ऊपर लगा हुआ है गोवा का मानचित्र। बताता है कौन जगह है। कितनी दूर है। दूर से देखने में आकर्षक लगता है मानचित्र। लेकिन पास से जब देखते हैं तो उसके केवल एक फ़ीट नीचे नाले का पानी बहता दीखता है तो सारा ध्यान नाले पर अटक जाता है। चमक-दमक वाली तमाम चीजों के अन्दर का सच कुछ ऐसा ही होता है शायद।

होटल के दरबान से पूछ्ते हैं चाय किधर मिलेगी? वह जो जगह बताता है उतनी दूर जाने का मन नहीं होता। कमरे में रखे चाय का इंतजाम, दो-तीन मिनट की दूरी पर कलंगट बीच, सुबह नौ बजे से क्लास का इंतजाम तथा मोबाइल की बैटरी 20% ही यह सब मिलकर आगे जाने से रोकते हैं। हम वापस चल देते हैं।

हमारे दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों में मोबाइल का दखल इस कदर हो गया है कि मोबाइल की बैटरी कितनी चार्ज है यह भी निर्णय प्रक्रिया में शामिल हो गयी है।

बीच की तरफ़ जाते हुये होटल के बाहर बैठे दरबान से चाय के बहाने बात करते हैं। वो बताता है कि चाय यहां आठ बजे से पहले नहीं मिलती। बीच पर कोई दुकान नहीं। लेकिन आठ बजे के बाद लोग साइकिल पर चाय का कंटेनर लादे चाय बेचते दिखाई देंगे।

दरबान की आवाज से बंगला भाषी होने की भनक मिलती है। बताता है कोलकता का है। छह साल पहले आया है यहां रोजी-रोटी के सिलसिले में। परिवार वहीं है।

दूध के पैकेट रखे हुये हैं बाहर। आधा किलो का पैकेट 16.50 का है।

घूमने के लिये मोटर साइकिल किराये पर मिलती है। 500 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से। फ़ेस्टीवल सीजन खतम हो गया है गोवा में लेकिन टूरिस्ट सीजन मार्च तक चलेगा।

बीच की तरफ़ जाते हैं। समुद्र की लहरों की आवाज दूर से सुनाई देती हैं। लहरें मानों समुद्र का पानी तट पर लाकर पटक दे रही हैं। लेव संभालों कहते हुये अगली खेप के लिये वापस समुद्र की तरफ़ चल देती हैं। रात को तट की तरफ़ आती हुयी लहरें चन्द्रमा की रोशनी में चमकती दिखाई दे रहीं थीं।

होटल पर लौटते हैं तो एक विदेशी जोड़ा बीच की उम्र का बाहर कुर्सी पर बैठा है। कुछ अन्दर लाबी में इन्तजार कर रहे हैं। उनसे कुछ पूछते हैं तो भाषा की दीवार बीच खड़ी हो जाती है। लेकिन इशारों में बातचीत करने पर पता चलता है कि वे रूस से आये हैं। घूमने के लिये। अंग्रेजी कम जानने का इशारा उंगली और अंगूठे को एक इंच की दूरी पर रखते हुये बताया - ’इंगलिश चूं चूं। मतलब अंग्रेजी कम आती है।’

इसके बाद वह शायद रूसी भाषा में कुछ बोलता रहा। हम कुछ समझ न पाये। वह कुछ मजेदार डायलाग बातें भी बोल रहा होगा क्योंकि उसकी बातें सुनकर उसकी साथिन हंसती जा रही थी। महिला का हंसना साफ़ समझ में आ रहा था। हंसने के लिये किसी भाषा की दरकार नहीं होती।

होटल का रिशेप्सनिस्ट बताता है कि हफ़्ते भर से आये हुये हैं ये लोग। इनका गाइड आयेगा तब इनको घुमाने ले जायेगा।

होटल में नेटवर्क गोल है। इंटरनेट कनेक्शन होटल से मिला है। एक हफ़्ते का वाई-फ़ाई चार्ज 1200 रुपये लिखा है कागज पर। वह भी किसी एक ही डिवाइस के लिये। चाहे मोबाइल चला लो या फ़िर लैपटाप। मेेरे मोबाइल में तो इंटरनेट है ही। बाहर निकलेंगे भड़ से आ जायेगा। इसलिये मैं लैपटाप पर ही वाई-फ़ाई कनेक्शन करता हूं। इसमें भी मोबाइल की बैटरी कम खर्च होने की बात दिमाग में हैं।

सुबह हो गयी अब। सूरज भाई बाहर से हल्ला कर रहे हैं। कह रहे हैं -आओ यार बाहर, कहां अंदर बैठे हो घुसे हो। चलो तुमको समुद्र तट दिखायें।

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