Tuesday, January 05, 2016

पुलिया पर रामनाथ

कल सुबह फैक्ट्री जाते हुए पुलिया पर रामनाथ मिले। आराम से बैठे। धूप सकते । चमकती धूप का लालच। हम रुक कर बतियाने लगे। पता चला जीआईएफ से सात साल पहले रिटायर हुए रामनाथ। लेबर के रूप में भर्ती हुए थे। लेबर ही रिटायर हो गए। कोई प्रोमोशन नहीं 34-35 साल की नौकरी में।

3 बच्चे हैं रामनाथ के। तीनों मजूरी का काम करते हैं। रामनाथ की नजरों में बेरोजगार। कुछ काम मिल जाता है तो कर लेते हैं।

तम्बाकू रगड़ रहे थे रामनाथ हैं। बोले -  -- " हर नशा किया। गांजा, चरस, अफीम, भांग, दारू। खूब किया। अब सब छोड़ दिया। केवल तम्बाकू खाते हैं।"

अंगूठे से हथेली रगड़ते हुए उन्होंने तम्बाकू खाने का इशारा किया। मुझे तम्बाकू की वकालत करने वालों द्वारा गढ़ा गया यह दोहा याद आ गया:

कृष्ण चले बैकुंठ को, राधा पकड़ी बांह
हियां तम्बाखू खाय लो, हुंआ तम्बाकू नांय।

हर तरह का नशा करने की बात जब रामनाथ ने कही तो हमने पूछा फैक्ट्री के बाहर करते रहे होंगे नशा। इस पर वो शान से बोले- " अरे न। फैक्ट्री में भी करते थे। किलो-किलो गांजा लोगों की पेटी में रहता था अंदर।"

67 साल की उमर और आँख में चश्मा नहीं था। हमने पूछा-" साफ़ दिखाई देता है?"

बोले -काम चल जाता है।

हमारे पास और कोई सवाल नहीं था रामनाथ से पूछने के लिए। हम फैक्ट्री चले गए। साल का पहला दिन था कल मेरा फैक्ट्री जाने का।
 

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