Saturday, February 13, 2016

चाय के साथ चुम्बन दिवस



सुबह-सुबह मोबाइल आन किया तो पता चला कि आज ’चुम्बन दिवस’ है। क्यों मनाया जाता है चुम्बन दिवस यह जानने के लिये गूगल की शरण गये तो खूब सारी फ़ोटो चुम्बनरत फ़ोटो दिखीं। अधिकतर में युवा लोग खड़े होकर या बैठे हुये चुम्बन करते दिखे । सब नवीन वस्त्र धारण किये। इससे लगा कि जो भी हो यह त्योहार सुबह-सुबह नहीं मनाया जाता। आराम से नहा धोकर ’सेलिब्रेट’ किया जाता है। बिना नहाये-धोये मनाया जाता होता तो फ़ोटो में लोग बिस्तर में बैठे, मंजन करते, चाय पीते दीखते। फ़ोटो में लोग नदी के किनारे दिखे, पहाड़ पर दिखे, एफ़िल टावर के पास दिखे। 

कोई व्यक्ति किसी झुग्गी-झोपड़ी के पास किसी को चूमते नहीं दिखा। कोई फ़टेहाल व्यक्ति किसी दूसरे बदहाल को चूमते नहीं दिखा। कोई हड्डी-पसली का एक्सरे टाइप आदमी किसी चुसे हुये चेहरे वाले इंसान को चूमते नहीं दिखा। जो भी दिखा किसी को चूमते हुये वह झकाझक कपड़े में चकाचक चेहरे वाला ही दिखा। बढिया शैम्पू किये बाल, डिजाइनर कपड़े पहने लोग ही चुम्बनरत दिखे। इससे यही अंदाज लगा कि ’चुम्बन दिवस’ गरीब लोगों के लिये नहीं है। मीडिया इसको जितना धड़ल्ले से इसे दिखा रहा है उससे भी सिद्ध होता है कि इस त्योहार का गरीब लोगों से कोई संबंध नहीं है।

पुराने समय की पिक्चर में हीरो-हीरोइन लोग आपस में एक दूसरे को सीधे-सीधे चूमने में परहेज करते थे। सब काम इशारे से होता था। फ़ूल को भौंरा चूम लेता था लोग समझ जाते थे कि चुम्मा हो गया। कुछ इसी तरह से जैसे पहले जनसेवक , आजकल की तरह, गुंडागर्दी खुद नहीं करते थे। इस काम के लिये अलग से गुंडों का इंतजाम करते थे।

धीरे-धीरे थोड़ा खुलापन बढा और हीरो लोग हल्ला मचाने लगेे -’दे दे चुम्मा दे दे’ कहने लगे। जितने जोर से हीरो चुम्मा मांगता है उतनी जोर से अगर गरीब लोग अपने लिये रोटी मांगते तो शायद अब तक भुखमरी खत्म हो गयी होती देश से।

पहले सिनेमा में चुम्बन ऐसे हो थे मानो नायक स्पर्श रेखा खींच रहा हो नायिका के अधर या गाल पर। आजकल की पिक्चरों में तो ऐसे चूमते दिखाते हैं मानों कम गूदे वाला आम चूस रहे हैं। इतनी मेहनत करते हैं लोग पिक्चरों में चूमने में कि देखकर लगता है कि अगले के होंठ न हुये कोई सार्वजनिक सम्पत्ति हो जिसे नोचकर लोग अपने घर ले जाना चाहते हों।

प्रगाड़ चुम्बन में जुटे होंठ बिजली के पिन और साकेट सरीखे लगते हैं। जहां कनेक्शन हुआ नहीं कि मोहब्बत की बिजली दौड़ने लगती है।जरा देर तक बही करेंट तो बहुत देर तक झटका मारती रहती है। सांस उखड़ने लगती है। बेदम हो जाते हैं लोग। बाद में ताजादम भी।

सूरज भाई भी लगता है ’चुम्बन दिवस’ पूरे उल्लास से मना रहे हैं। हर कली को, फ़ूल को, पत्ती को, घास को, मिट्टी को, सड़क को, कगूरे को एक समान प्रेम से चूम रहे हैं। हमको देखा तो हमारे गाल पर भी धर सी एक ठो पुच्ची।

फ़िलहाल आप मजे से जैसा मन करे वैसे मनाइये ’चुम्बन दिवस’। हम तो चाय के कप को चूमते हुये चाय की चु्स्की के साथ मना रहे हैं ’चुम्बन दिवस।

'चाय' के साथ 'चुम्बन' जोड़ने से अनुप्रास अलंकार भी हो गया। और कुछ हो न हो लेख के अंत की छटा दर्शनीय हो गयी।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207315861268253

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