Monday, February 15, 2016

सुबह का बखत है, झूठ नहीं बोलेंगे

पानी भरने के लिए जाती दीपा
बहुत दिन बाद आज साइकिल फ़िर स्टार्ट हुई। हमें लगा कुछ तन्न-भन्न करेगी लेकिन पहला पैडल मारते ही चल दी। अगले में तो ऐसे चलने लगी मानो बहुत देर से चलाते आ रहे हों।

साइकिल का व्यवहार ऐसे साथी के व्यवहार सा लगा जिससे बहुत दिन बाद मिलने पर आशंका सी होती हो कि मिलने पर गुस्सायेगा लेकिन अगला मिलते ही गले लगा ले। आलिंगन में आशंका की मूरत ऐसे चकनाचूर हो जाए कि अलगाव का समय पता ही न चले कभी था भी क्या !

बाहर निकलते ही चार-पांच लड़के घुटन्ना पहले जेब में हाथ डाले टहलते जा रहे थे। मुझे उनको देखकर एक दोस्त की कही बात याद आ गयी कि जो जेब में हाथ डालकर फ़ोटो खिंचाते हैं वे घुटे हुये, घुन्ना होते हैं। उनकी बात का भरोसा नहीं किया जा सकता। क्या ऐसा सही में होता होगा? फ़िर तो जाड़े में तमाम लोग घुटे हुये हो जाते हैं। हाथ जेब में डाले घूमते हैं।

एक बच्चा छुटकी साइकिल में स्कूल जा रहा था। उससे पूछा तो बोला -650 का स्कूल है। साइकिल बहुत धीरे-धीरे चल रही थी। आगे कुछ लोग सड़क पर दौड़ते हुये जा रहे थे। आधी सड़क घेरे हुये से। अचानक उनपर समझ टाइप हावी हो गयी और वे एक लाइन में आगे-पीछे होकर दौड़ने लगे। दौड़ते-दौड़ते एक धावक ने सड़क पर संटी टाइप उठाई और हवा में लगराते हुये आगे बढा। उनमें से जो सबसे आगे आ रहा था वह कुछ देर आगे रुककर दूसरे साथी से बोला - पैर दर्द हो रहा है। शायद जल्द ही दौड़ने का अभ्यास शुरु किया उन लोगों ने।
उनको देखकर मुझे Satish Saxena जी की दौड़ते हुये फ़ोटो याद आये। उन्होंने भी जब दौड़ना शुरु किया होगा तो पांव दर्द करते होंगे उनके। अब तो मैराथन धावक हो गये हैं। नये सिरे से जवान हो रहे हैं।  :)

दीपा से मिलने गये आज। VD Ojha और Surendra Mohan Sharma जी ने खासतौर पर उसके हाल पूछे थे। पहले भी गये थे एक बार परसों लेकिन रात हो जाने के कारण सो गये थे वो लोग।

आज जब मिले तो दीपा के पापा खाना बना रहे थे। बोले- ’बहुत याद करते रहे। कहां चले गये थे। आये नहीं। हम सोचत रहें हमसे कछु गलती हुई गई का?’


बेटे ने दारु, ठकुराई और जवानी के संयुक्त नशे  में आकर पीट दिया तो घर से बाहर आ गए
दीपा अन्दर से निकलकर आई। मुस्कराते हुये। हमने उसके हाल पूछे तो उसके पापा ने उसकी शिकायतों का पुलिन्दा हमारे सामने खोल के धर दिया- ’पढती नहीं है। बात नहीं मानती। मंदिर के पास शैतान लड़की की संगत में पड़ गयी है। खेलती रहती है। कल गोबर लाने को कहा तो गोबर तो ले आई लेकिन लीपा नहीं। बरतन नहीं मांजे। अभै फ़िर उठाया और मंजाये। कुछ कहो तो कहती है -मारते हौ।’

मारने की बात पर दीपा फ़ट से धीमे से बोली- ’तो का पिट जायें?’

हमने उसकी पढाई के बारे में पूछा तो उस पर भी उसके पापा बोले-’ ट्युशन भी नहीं गई। बुखार हो गया तौ दवा लाये लेकिन नहीं खाई। जे देखौ धरी हैं। हम समझाते हैं -बिटिया तुम्हारी मां नहीं , भाई नहीं , बहन नहीं । जो कुछ हैं हमई तुम हैं। लेकिन मानती नहीं।’

हमने दीपा को समझाया कि पढ़ा करो। वह चुप रही। बाल की लटें उलझी हुई थीं। लगता है बहुत दिन से नहाई-धोई नहीं ठीक से।

बुखार था दीपा को। उतर गया। खांसी अभी भी आ रही है। हमको भी आ रही है खांसी। आज सिरप लायेंगे दोनों के लिए। :)


खम्भे का बल्ब फिर फ्यूज हो गया है। अंधेरा रहता है दीपा के यहां रात को। पता नहीं फिर कब ठीक होगा बल्ब। शायद जबलपुर के स्मार्ट सिटी बन जाने के एन पहले।

ऐसे बच्चे जो जिनका बचपन जैसा न होकर दीपा जैसा कठिन सा हो जाता है कैसे पढ सकते हैं यह सोचने की बात है। कल आराधना ने एक एनजीओ के बारे में बताया जिसमें वो लोग शनिवार/इतवार को आसपास के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। http://ngorahi.org/ मन किया अपन भी कुछ ऐसा काम करें। लेकिन मन करना अलग बात है। उस पर अमल दीगर बात।


ट्रेन से फिसलकर दिव्यांग हुए घनसियाराम
दीपा का स्कूल आठ बजे का है। वह पानी लाने चली गयी। हम उसके पापा से बतियाते रहे कुछ देर। वहां दूसरा रिक्शा देखकर पूछा तो बताया कि एक जन हैं कंचनपुर में रहते हैं। उनको उनके लड़के ने पीट दिया तो वे यहीं रहते हैं। हमने कहा आओ रहो।

इसी बीच दूसरे रिक्शे वाले भी आ गये। पूछा तो बोले- ’ सुबह का बखत है। झूठ नहीं बोलेंगे। हम और हमारा लड़का दोनों पीते हैं। उसने नशे में मुझे पीट दिया तो हम यहां चले आये।’

घर में बीबी है। लड़की की शादी कर दी। लड़का शटरिंग का काम करता है। 400-500 रुपये रोज कमाता उसकी शादी करने वाले थे इस साल । लेकिन उसने पीट दिया तो घर से चले आये।

बताया --’खाना होटल में खाते हैं। दारू रोज पीते हैं।

कितने की पीते हो ? पूछने पर बोले-’ हम कच्ची पीते हैं। 20 रुपये की रोज पीते हैं।’

हमें रागदरबारी के कुसहरप्रसाद याद आये जिनको उसके बेटे छोटे पहलवान ने पीट दिया तो पंचायत के पास पहुंचे थे। ये रिक्शे वाले भी राठौर हैं। ठाकुर, दारू और जवानी के संयुक्त नशे में बेटे ने बाप को पीट दिया।

हमने समझाया कि तुमको तुम्हारे लड़के ने थोडी ही पीटा है। दारू ने पीटा। नशा उतर गया अब घर जाओ। इस पर वो कुछ बोले नहीं। शायद दो-चार दिन में घर वापस चले जायें।

लौटते में एक पुलिया के पास बीड़ी सुलगाते घनसियाराम दिखे। एक पैर से ’दिव्यांग’। सन 1986 में ट्रेन में चढते समय पैर फ़िसल गया। जूता गीला था। अभी पुल बन रहा है। वहीं काम करते हैं। बीड़ी क्यों पीते हो पूछने पर बोले- ’ क्या करें? ’

लौटते में सूरज भाई दिखे। साथ-साथ चलते रहे। बोले- ’बहुत दिन बाद दिखे।’ किरणें भी कंधे, साइकिल, पीठ, चेहरे पर चढकर उछलती-कूदती रहीं। खिलखिलाती रहीं। सुबह सही में हो गयी है।

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