Saturday, March 19, 2016

आदमी उसी को तो गरियाता है जिससे उसका कुछ रिश्ता

आजकल किसी को गरिया दो लोग बड़ी जल्दी बुरा मान जाते हैं। किसी रसूख वाले को गरियाना तो और आफ़त का काम है। पता नहीं कौन कब बुरा मान जाये और मुफ़्त का रहना, खाना, पीना होने लगे। यहां तक कि अपने अजीज को भी गरियाना मुश्किल हो गया है।

पिछले दिनों फ़िराक साहब और चोर का किस्सा काफ़ी लोगों ने पसंद किया। काफ़ी लोगों ने उसे साझा किया। इसी सिलसिले में फ़िराक साहब से जुड़ा एक किस्सा और यहां पेश है।

फ़िराक साहब मुंहफ़ट टाइप के इंसान थे। जो मन आता कह देते, जिसको मन आता गरिया देते। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दुनियादार आदमी नहीं थे वे। मौके की नजाकत के हिसाब से समझदारी भी दिखाते थे।
फ़िराक साहब ने अपने मुंहफ़ट स्वभाव के चलते इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर अमरनाथ झा के बारे में भी कुछ कहा होगा। फ़िराक साहब और अमरनाथ झा जी सहपाठी रहे थे। फ़िराक साहब के विरोधियों ने अमरनाथ झा तक इसकी खबर नमक मिर्च लगाकर पहुंचाई होगी।

जब यह बात फ़िराक साहब को पता चली तो वे अमरनाथ झा से मिलने उनके बंगले गये। शाम को झा साहब के बंगले पर दरबार टाइप लगता। लोग उनसे मिलने आते थे। फ़िराक साहब भी पहुंचे। अपनी बारी का इंतजार करने लगे।

जब फ़िराक साहब का नम्बर आया तो अन्दर जाने के पहले उन्होंने बाल बिखेर लिये और कपड़े अस्त-व्यस्त कर लिये।

अन्दर पहुंचे तो फ़िराक साहब का हु्लिया देखकर झा साहब ने टोंका-’ फ़िराक, जरा सलीके से रहा करो।’

इस पर फ़िराक साहब बोले-’ अमरू तुम्हारे मां-बाप ने तुमको तमीज से रहना सिखाया। मेरे मां-बाप जाहिल , गंवार थे। उन्होंने मुझे कभी यह सब सिखाया ही नहीं तो तमीज कहां से आती मेरे पास सलीके से रहने की।’
इस पर झा साहब ने फ़िराक साहब को टोंका-’ फ़िराक अपने मां-बाप को इस तरह गाली देना ठीक नहीं। इस बात का ख्याल रखना चाहिये तुमको।’

यह सुनते ही फ़िराक साहब बोले-’ अमरू आदमी उसी को तो गरियाता है जिससे उसका कुछ रिश्ता होता है, अपनापा होता है। मैं अपने बाप को नहीं गरियाऊंगा, मां को नहीं कोसूंगा, दोस्तों को नहीं गरियाऊंगा तुमको नहीं गरियाऊंगा तो किसको गरियाऊंगा तो किसको गरियाऊंगा।’

अमरनाथ झा बोले-’ओके, ओके फ़िराक। मैं तुम्हारी बात समझ गया (आई गाट योर प्वाइंट)।

फ़िराक साहब वापस चले आये।

(यह किस्सा ममता कालिया जी ने तद्भव पत्रिका में अपने संस्मरण ’कितने शहरों में कितनी बार’ में बताया था। किताब कानपुर में घर में है। मैंने इसे याद से लिखा इसलिये शब्द इधर हो गये होंगे लेकिन भाव वही है।)
नोट: इस पोस्ट की तरकीब को वे लोग अपने बचाव के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं जिनकी किसी पोस्ट प आहत होकर कोई उन पर केस कर दे। वे कहते सकते हैं -’ हम आपको अपना मानते हैं भाई। अब जब किसी अपने को नहीं गरियायेंगे तो किसको गरियायेंगे।

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