Friday, April 08, 2016

ये सब बिल्डिंग हमारे सामने बना

किर्बी पैलेस चौराहे पर पानी भरते दांत मांजते लोग
मुख्य सड़क से सौ कदम अंदर जाते ही झुग्गी-झोपड़ियों का जंगल शुरु हो गया।

यह तो रागदरबारी की शुरुआत (शहर का आखिरी छोर जिसे पार करते ही भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता है) की तर्ज पर लिखा।

लेकिन झोपड़ियों के जंगल के पहले आपको मुख्य सड़क दिखाते हैं।

गेस्ट हॉउस के कमरे से बाहर निकलते ही मुंडेर पर मोर चहलकदमी करता दिखा। ऐसे ठुमक-ठुमक कर चल रहा था जैसे रैंप पर कोई माडल। पहले आगे गया। ठहरा फिर पीछे आ गया। हमने फोटो खींचना चाहा तो मुंह घुमा लिया। हमने भी ज्यादा भाव नहीं दिया। टहलने निकल लिए। बाद में देखा वह टुकुर-टुकुर हमारी तरफ देखा रहा था। मानो कहना चाह रहा हो-'अरे हम कोई मना थोड़ी कर रहे थे। लेकिन थोड़ा भाव मारने का मन था। आपने फोटो नहीं खींचा।'


सड़क के अंदर घुसते ही झुग्गी का जंगल शुरू हो जाता है
गेट पर सुरक्षा दरबान मिले सरदार जी। पंजाब के रहने वाले। सेना से रिटायर्ड। 12 हजार देता है ठेकेदार। परिवार गांव में है। यहां 4 लोगों के साथ रहते हैं। डबल ड्यूटी 'मार लेते' हैं खर्च चलाने के लिए। मतलब 24 हजार महीना। बिटिया मेडिकल की तैयारी कर रही है। छोटा बच्चा स्कूल में पढता है। तीन-चार महीने नौकरी करते हैं फिर एकाध महीने के लिए घर चले जाते हैं।

चौराहे पर लोग रिक्शे में पानी की कंटेनर रखे पानी भर रहे थे। पास की ही झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं। 2 हजार झुग्गियां हैं। पानी की सुविधा नहीं। यहाँ तिराहे में एक नल से पानी भरने आते हैं।'

अपने विधायक सुरेन्द्र सिंह और केजरीवाल के लिए गुस्सा जाहिर करते हुए बोला पानी भरता हुआ आदमी -'सुरेन्द्र सिंह फ़ौज का सिपाही था। केजरीवाल लहर में जीत गया। अब आता तक नहीं इलाके में। फॉर्च्यूनर में उसके आदमी घूमते हैं उनके पीछे आडी कार में खुद घूमता है।

आगे बताया उसने--'पहले का विधायक था उसका यहां दफ्तर था। लोगों से मिलता था। उनकी समस्या सुनता था। ये तो जब से चुनाव जीता दिखना ही बन्द हो गया। कहता है पानी के लिए 35 लाख का काम कराया है। अरे 35 हजार का काम नहीं हुआ। अब जब चुनाव आएंगे तब आएगा शकल दिखाने।'


चाय की दुकान पर ट्रक ड्राइवर चाय पीते हुए
पानी भरने वाला ड्राइवर है। सहारनपुर का रहने वाला है। वहीं एक लड़का ब्रश से दांत घिस रहा था। हमने कहा--'आज ही सब दांत घिस दोगे तो कल क्या करोगे?' वह मुस्कराते हुए मञ्जनरत रहा। बाद में बताया कि बिहार के पूर्णिया जिला से आया है दिल्ली में मजदूरी करने।

चौराहा पार करते ही सीओडी डिपो के पास सैकड़ों ट्रक खड़े दिखे।मुझे लगा कि ये लोग शायद सामान लेने आये होंगे। आगे गए तो एक चाय की दुकान पर तमाम ड्रायवर बैठे चाय पीते हुए बतिया रहे थे। पता चला कि ये लोग अलग-अलग कंपनियों से सीओडी में माल देने आये थे। कोई प्रॉक्टर एन्ड गैम्बल से। कोई गोदरेज से। कोई कहीं और से।

ड्राइवर टोल टैक्स की बात कर रहे थे। दिल्ली आते ही टोल टैक्स ठुक जाने के कई किस्से। अलग-अलग सामान पर अलग टैक्स।

ड्राइवरों से हमने पूछा कि आप लोगों में कोई ट्रक मालिक भी होगा। लोगों ने कहा-'मालिक ट्रक कहाँ चलाता है।सब ड्राइवर हैं।'

हमने कहा -'कोई ड्राइवर पुराना ट्रक खरीदकर खुद चला सकता है न।'


दिनेश को चाय छानते हुए देखती उनकी जीवन संगिनी
इस पर उसने कहा-'पुराना ट्रक दिल्ली में घुसने नहीं मिलता।ट्रक ड्राइवर के लिए तो यही कहा जाता है:
'भूखे मर नहीं सकते,
तरक्की कर नहीं सकते।'

चाय की दुकान चलाने वाले रमेश 35 साल से यहाँ बसे हैं। कटिहार से आये थे यहां। उन दिनों वहां बाढ़ आती थी। हर साल फसल बर्बाद हो जाती थी। गुजारे के लिए आये थे। तब यहां जंगल था। एम ई एस के ठेकों में मजदूरी करते थे। यहीं बस गए। शादी के बाद पत्नी को भी ले आये। सब बच्चे यहीं हुए।

दो बेटियां हैं दिनेश की। एक एमसीडी में काम करती है। कैजुअल वर्कर में माली का काम। अभी 500 दिन काम नहीं करी है। 500 दिन के बाद परमानेंट हो जायेगी। साल भर से काम नहीं मिला है। दामाद सीओडी में लेबर का काम करता है। दूसरी बेटी की शादी बिहार में किये। बेटा भी साथ में ही काम करता है।

दिनेश के दो नाती नीली शर्ट पहने स्कूल ड्रेस में तैयार हो रहे थे।

इस बीच चौराहे पर पानी भरते हुए मिला ड्राइवर पानी भरकर वापस आ गया था। वह भी यहीं रहता है। उसने चाय वाले से कहा -'इनको बढ़िया चाय पिलाना। बहुत दूर से आये हैं चाय पीने।'

झुग्गी में बिजली नहीं है। प्राइवेट जनरेटर से 20 वाट के सीएफल का 6 घण्टे का 200 रुपया महीना पड़ता है। दो कमरे का घर अलाट हुआ है। 70 हजार जमा किये थे। अभी चाभी नहीं मिली है।

दिनेश की पत्नी और दिनेश दोनों चाय बनाते हुए नाश्ते की तैयारी भी करते जा रहे थे। एक भगौने में आलू और चना साथ-साथ उबल रहे थे।आलू पक गया तो उसके पेट में चाकू घुसेड़कर दुकान मालकिन ने उनको थाली में धर दिया। चना उबलता रहा।

'दिल्ली में पेट पालने के लिए रहते हैं बाकी सुकून तो गाँव-घर में ही रहता है। हर साल महीने भर के लिए चले जाते हैं घर। तब दुकान बन्द रहता है।' दुकान मालकिन ने बताया।

'ये सब बिल्डिंग हमारे सामने बना। हम यहां मजूरी किये हैं। ' -उबलती चाय को छन्नी से हिलाते हुए महिला ने बताया।

फोटो दिखाए तो थंकू बोला बहनजी ने। मन किया प्रिंटर होता तो वहीँ निकाल कर फोटो दे देते उनको। कई बार सोचा है कि प्रिंट कराकर दे देंगे फोटो। लेकिन सोच अमल पर अमल नहीं हुआ अब तक।

लौटते में पानी भरने वाले काम हो गए थे। दरबान सरदार कहीं दूसरी जगह चले गए थे। दूसरे दरबान अख़बार पढ़ रहे थे। ये भी फ़ौज से रिटायर्ड। नायब सूबेदार पद से। हरियाणा के रहने वाले हैं।

बात हुई तो पता चला कि 3 बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी मेडिकल में, उससे छोटी इंजीनिरिंग में पढ़ रही है। 3 भी मेडिकल की तैयारी कर रही है। सबसे छोटा बेटा इंटर में गया है।

'एक बेटे के लिए 3 बेटियाँ पैदा की। ये बेटा न होता तो कितनी बेटियां और होती।'- हमने मजे मजे में पूछा।

इस पर जो उन्होंने कहा उसका मतलब यही था कि वे खुद इसके पक्ष में नहीं थे पर दुनिया के रिवाज के चलते हुआ ऐसा।

बच्चों की पढाई का खर्च कैसे निकलता है दरबान का काम करते हुए पूछने पर बोले -' दो जगह दरबान का काम करता हूँ। पेंशन है। इसके अलावा कोई अपना खर्च नहीं। सादा खाना। न कोई नशा न कुछ और। फ़ौज में रहते हुए भी दारू नहीं पी। अब तो बच्चे तैयार हो गए। अगले साल तक बेटी की नौकरी भी लग जायेगी। उनकी पढाई में कमी नहीं आने देंगे चाहे कुछ भी करना पड़े।'

'बेटियां बहुत मानती होंगीं आपको फिर तो'--हमने पूछा।

'हाँ, मेरी बच्चियां बहुत अच्छी हैं। बाहर पढ़ने गयीं। कभी नाजायज खर्च नहीं माँगा। हमने भी उनसे कह रखा है- तुम्हारी पढाई में जो भी खर्च आ आएगा उससे पीछे नहीं हटूंगा। चाहे कुछ भी करना पड़े। जरूरत पड़ेगी तो किडनी तक बेंच देंगे पर पढाई में कोई कमी नहीं आने देंगे।' -इतना सुनने के बाद आगे बात करना कठिन हो गया मेरे लिए। आँख नम हो गयी। मैं हाथ मिलाकर कमरे पर चला आया।

दो दिन पहले शाम को रक्षा मंत्रालय की एक मीटिंग में आये थे दिल्ली। सोचा था कि तमाम मित्रों से मिलेंगे। लेकिन कल रात जब मीटिंग खत्म हुई तो साढ़े आठ बज गए थे। इसलिए किसी से मिलना न हुआ। अब वापस जाने का समय हो गया।

बिना मिले सब लोग मिला हुआ समझना। ठीक न।



  

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