Tuesday, July 05, 2016

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बैठे हैं, साइकिल चला रहे हैं और साइकिल
बारिश में भीगता साईकल सवार शायद कह रहा है --कार पर बैठकर फोटो खींच रहे हो ?
कल आरटीओ दफ्तर जाना हुआ। बेटे का 'सिखाऊआ लाइसेंस' बनवाना था। आरटीओ दफ्तर के बगल में एक्साइज और सेल्स टैक्स दफ़्तर, उसका गेट, उसके पहले चार फिट की खाईनुमा खुदाई। जैसे एक्साइज दफ्तर कोई किला हो जिसकी सुरक्षा के लिए खाई खुदी थी। सामने यूपीका हैण्डलूम के सामने भी खाई खुदी थी। हैण्डलूम के कर्मचारी दुकान में निठल्ले से बैठे बाहर का नजारा देख रहे थे।

गाड़ी खड़ी करने का इंतजाम नरेंद्र मोहन सेतु के नीचे किया गया था। नगर निगम ने यह व्यवस्था शायद पुल के नीचे अतिक्रमण रोकने के लिए भी की हो। नगर निगम के इस इरादे की ऐसी-तैसी पुल के नीचे जगह-जगह बैठे स्टाम्प विक्रेता, नोटरी आदि शानदार तरीके से कर रहे। उनके चेहरे पर बेफिक्री का इश्तहार चिपका था -'हम जहां बैठ जाते हैं, जाम वहीँ से शुरू होता है।'

पहले आरटीओ दफ्तर के सामने खड़ी करदेते थे लोग। अब 100 कदम दूर हो गया है। लोगों ने डराया भी अगर आरटीओ दफ्तर के सामने खड़ी करोगे तो उठ जायेगी। हम बहुत देर तक सोचते रहे कि दोनों तरफ खुदी खाईयों के चलते तन्वंगी हो चुकी सड़क पर गाड़ी उठाने वाली गाड़ी घुसेगी कैसे?

दफ्तर के अहाते में माहौल शोभा बरनि न जाए वाला था। घुसते ही अनगिनत मोटर साइकिलें किसी चुनाव में काले धन सरीखी गंजी पड़ी थी। एक की मोटर साईकल दूसरे पर ऐसे सटी हुई थी मानो इश्किया डायलॉग बोल रही हो -'दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये।'

मोटरसाईकल के बाद आदमियों का जमावड़ा था। हर तरफ आदमी ही आदमी। लोग ही लोग। जितने आ रहे थे उससे ज्यादा जा रहे थे। लेकिन फिर और लोग आकर जाने वालों की कमी पूरी कर रहे थे। मौसम की गर्मी बचाने के लिए जगह-जगह गड्ढ़ों में बारिश का पानी जमा था। पानी बहकर नालियों में न चला जाए इसके लिए जमीन को कच्चा रखा गया था।

अहाते में जगह-जगह तरह-तरह की दुकाने खुली थीं। नुक्कड़ पर एक महिला पान मसाला, सस्ते पेन, सफ़ेद कागज और टिकट लगे लिफाफे बेच रही थी। उसके बगल में एक बच्चा सफ़ेद पेटी में कोल्डड्रिंक बेच रहा था। साथ में एक लटाई लिए उस पर पतंग उड़ाने का मांझा और सद्दी लपेट रहा था। उसके पीछे दीवार पर ऊगा पेड़ भी हिल डुल कर अपनी हाजिरी सी लगा रहा था।

अंदर घुसते-घुसते कई लोगों ने लाइसेंस बनवाने के लिए 600/- रुपये का ऑफर दिया। मतलब लाइसेंस फ़ीस का 20 गुना ज्यादा । लेकिन हम सीधे आरटीओ साहब से मिले। आरटीओ जी अपने बाबुओं को सिंगल विंडो पर सब काम करने की हिदायत दे रहे थे। बाबू लोग उनसे सहमत थे लेकिन बता रहे थे कि उनके लिए आदमी चाहिए। आरटीओ साहब ने इन्तजाम का आश्वासन दिया और काम ऐसे करने को कहा की जल्दी निपटे। बाबू लोगों ने काम जल्दी निपटाने की व्यवस्था का आश्वासन दिया और फिर और आदमियों की मांग की।

बहुत भीड़ थी। हर काउंटर पर लोग ही लोग। लोगों के बोझ से सीटें जमीन से आ लगीं थीं। कहीं लर्निंग लाइसेंस बन रहा, कहीं परमानेंट, कहीं रिन्युअल, कहीँ कुछ, कहीं कुछ। लर्निंग लाइसेंस के लिए टेस्ट हो रहा था। सरल सवाल राजभाषा वाली हिंदी में जिनमें से कुछ का मतलब कोई हिंदी का विद्बान ही बता सकता था जिसने आरटीओ में नौकरी की हो।

टेस्ट देकर फीस जमा करने गए। वहां भी भीड़। फिर फोटो और हाथ के निशान। वहाँ भी गजब भीड़। हर जगह भीड़ ही भीड़ बस आप धँस तो लें। जो लोग कहते हैं कि सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते उनको सुबह-सुबह किसी महानगर के आरटीओ दफ्तर जाकर अपनी धारणा बदलने का प्रयास करना चाहिए।

जबतक हमारा बच्चा लाइन में लगा था तब तक हम फिर नजारा देखने में जुट गए। एक बच्चा पानी के पाउच बेंच रहा था। एक पुलिस वाला टहल-टहलकर इधर-उधर कुछ बतिया सा रहा था। एक जगह कुछ लोग शहर में हुई डकैती के बारे में बतिया रहे थे--'लौंडे थे साले। अय्यासी करने के लिए लूट-पाट करते थे। पकड़ा गया एक। साले को जहां डंडे पड़े सब कबूल दिया। 10 लाख बरामद भी हो गए। पिछले महीने गोआ ऐश करके आये थे।'

कुल मिलाकर आरटीओ दफ्तर में मेले जैसा माहौल था। सुव्यवस्थित अव्यवस्था टाइप जीवन्त व्यवस्था। करीब 3 घण्टे विभिन्न काउंटरों पर जूझते हुए लर्निंग लाइसेंस का फार्म जमा करके जब लौटे तो बहुत कुछ सीख-देखकर लौटे।

लौटते समय पानी बरसने लगा था। एक आदमी अपने साईकिल के कैरियर पर एक ठेलिया लादे चला जा रहा है। देखकर हमको एक बार फिर लगा कि जुगाड़ के मामले में हम लोगों को टक्कर देना आसान नहीं। जिस स्पीड से साईकल वाला कैरियर पर ठेलिया लादे चला जा रहा था उससे यही कहने का मन हुआ - 'झाड़े रहो कलट्टरगंज।'

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