Saturday, July 16, 2016

"बेवकूफी का सौंदर्य" व्यंग्य संग्रह की बेवकूफी भरी समीक्षा।



"बेवकूफी का सौंदर्य" व्यंग्य संग्रह की बेवकूफी भरी समीक्षा।
अनूप शुक्ल जी का बेवकूफी का सौंदर्य व्यंग्य संग्रह की समीक्षा पर हमने सोचा बेवकूफी भरी हो तो अच्छा । अनूप शुक्ल वैसे तो नाम अच्छा है पर मेरे हिसाब से इनका नाम अनूप नहीँ अनुरूप ज्यादा फिट बैठता है वजह ये जो कहना चाहते हैं वो शब्दों से खेल कर कहला ही लेते हैं ।
वैसे तो हर साहित्य और सुंदर चीज़ का सौंदर्य होता लेकिन बेवकूफी का भी सौंदर्य होता यह ज्ञान इस अनूठे लेखक द्वारा पता चला ।😊
कट्टा कानपुरी के नाम से लिखते हैं जो की अपने आप मे एक व्यंग्य है । बहुत से लोगों को पढ़ा पर ये अलग सा शीर्षक लगा...फ़िर क्या बेवकूफी के सौंदर्य को घर मंगाने की व्यवस्था कर दी ।
यह व्यंग्य सौंदर्य भाषा और शैली के मानको मे उम्दा है ।यह संग्रह पढ़ना शुरू किया तो पढ़ती ही गई । हर बात को इतनी सहजता और सरलता से कहा गया है कि यही तरीका व्यंग्य के नायक को अलग बनाता है।
ये ऐसे फेसबुकिया व्यंग्यकार फेसबुक से होते हुये ब्लॉगर तक और अब किताब तक जा पहुँचे । ये तो रही लेखक की बात ।अब बात करते हैं लेखक के व्यंग्य संग्रह की । जितना अलग किताब का शीर्षक उतने ही अनोखे व्यंग्य लेख।
व्यंग्य लेखों मे लेखक ने जिन विषयों को उठाया है कुछ सम्वेदनशील तो कुछ समाजिक अनिमियताओं पर ज़बर्जस्त प्रहार करते हैं ।
संग्रह का पहला लेख"छोटी इ ,बड़ी ई और वर्ण माला"
किसी परिवार की देवरानी, जेठानी और बुजुर्गो के बीच की खींच तान सी लगती है वैसे इसकी तुलना हम दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार की तू तू ,मै मै से कर सकते हैं । इस लेख के तू तू ,मै मै के अंश.....
"दोनो मे से किसी के पास हाईस्कूल का सर्टिफिकेट तो है नहीँ कि बड़े -छोटे का मामला तय हो सके ।आपस मे जुड़वा मानने को तैयार नहीँ ।हर "ई" चाहती है उसको ही बड़ा माना जाये"
वैसे इन लाइनों से कुछ और भी भाव उभरते हैं जो लेखन क्षेत्र से हैं । उम्मीद है आप समझ ही गये होंगे।
बात करें किताब के तीसरे संग्रह की तो पता चलता है बेवकूफी का भी अपना सौंदर्य होता है । मुझे जहाँ तक समझ आता है लेखक 1st अप्रैल बेवकूफी दिवस से खासा प्रभावित होंगे । प्रेरित कहाँ से हुये ये नहीँ मालुम, पूछना पड़ेगा । इस लेख की सबसे मजेदार लाईने आप लोगों के बीच.....
(लोगों के लिये ) "गर्ज यह कि दुनिया की हर बेवकूफी करते हैं सिर्फ इसलिये कि लोग उनको होशियार समझे ।काबिल माने ।बेवक़ूफ़ न समझे ।"
इसका मतबल अब से होशियारी बंद करिये और बेवक़ूफ़ बनना शुरू करिये जिससे होशियार बने ।
संग्रह मे एक से बढ़कर एक तीखे ,मजेदार लेख हैं।बात करूँ इसमें से मेरे पसंदीदा लेख की तो वो है "द्वापर मे भूमि -अधिग्रहण" इससे पता चलता है यह अधिग्रहण नाम की बला का भौकाल जिनको हम ईश्वर मानते उस ज़माने से है । और हम सब यहाँ कलियुग मे अइसने चंगेज़ खाँ बन रहे हैं ।
अगर आप सब भी बेवक़ूफ़ मेरा मतलब होशियार बनना चाहते हैं वो भी बिना बेवक़ूफ़ बने तो ,आप भी यह संग्रह पढिये। और लेखक अनूप जी को तो कहने की कोइ ज़रूरत ही नहीँ कि ऐसे ही लिखते रहिये क्योंकि ये काम वो कर ही रहे हैं करते ही जायेंगे मानेंगे नहीँ । रोज़ सुबह -सुबह एक लेख चिपका देते हैं जिसको बिना पढ़े रहा नहीँ जा सकता ।
एक बार फ़िर कमाल के व्यंग्य संग्रह के लिये बधाई और शुभकामनाएँ यूँ ही 100cc बाइक के इंजन जैसे व्यंग्य जगत मे ज़बर्जस्त फर्राटा भरते रहे ।धन्यवाद ।
व्यंग्य संग्रह - बेवकूफी का सौंदर्य 
समीक्षक -शशि पाण्डेय 
लेखक -अनूप शुक्ल 
मोo नम्बर -9425802524
मूल्य -150 रुपये मात्र 
प्रकाशक -रुझान पब्लिकेशन 
एस -2,मैपल अपार्टमेंट ,163 ढाका नगर ,सीरसी रोड ,जयपुर ,राजस्थान -302012
(9314073017)

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