Wednesday, August 17, 2016

’जस्ट इन टाइम’ पहुंच गये

आज जब चले घर से तो पानी बहुत हल्का बरस रहा था। घर से निकलते ही सीट बेल्ट कसी। एक्सेलेटर पर कस के पांव धरते ही गाड़ी और घूउउउउउउन करते हुये दौड़ ली। हमने टोंका अरे धीरे चल री सजनी कोई विकास पथ पर थोड़ी भागना है।

गाड़ी मेरी बात से थोड़ा नाराज सी हुई। स्पीड ब्रेकर धचका देकर गुस्से का इजहार भी किया। हम थोड़ा गाड़ी धीमी किये और हल्का सा मुस्कराये तब जरा मूड ठीक हुआ कार का। कार का क्या अपन का ही और बेहतर हो गया हो गया होगा मुस्कराते ही इसलिये कार का भी ठीक लगा।

यूको बैंक के पास एक आदमी साइकिल चलाता जा रहा था। अचानक पैर पैडल से फ़िसला। साइकिल थोड़ा लडखड़ाई। वह सड़क की तरफ़ थोड़ा झुका। इस बीच उसके पीछे से कार सर्राती हुयी निकली। बाल-बाल टाइप बचा आदमी। कार वाले ने खिड़की ने बाहर झांका मानो अंखियों से गोली मार रहा हो साइकिल वाले को।

फ़ैक्ट्री का समय हो रहा था। सब हड़बड़ाये हुये भाग रहे थे। मेरे आगे एक आदमी एक महिला को मोटरसाइकिल पर बैठाये चला जा रहा था। अचानक स्पीड ब्रेकर से पर मोटरसाइकिल उछली। महिला भी साथ में गेंद की तरह उछली। जरा देर में फ़िर वापस आ गयी। हमको हाईस्कूल का भौतिक विज्ञान वाला पाठ याद आ गया -हवा में उछाली गेंद वापस हाथ में कैसे वापस आ जाती है।

विजय नगर चौराहे पर एक कार वाला गोविन्दनगर की तरफ़ से तेजी से आया। उसने कोशिश की हमसे पहले निकल जाये चौराहा पार करके। हम भी कोई कम चालू थोड़ी । हम समझ गये कि अगर वो पहले पार करेगा तो उसके पीछे की तीन गाडियां और लगी थीं, चमचों की तरह। मतलब एक मिनट की देरी। हम दबा के आगे बढाई गाड़ी और चौराहे के बीच पहुंच गये। अब एक कार गल्ला मण्डी की तरफ़ से हमारे रास्ते में कोशिश की आने की। लेकिन एक टेम्पो वाला उसके आगे आ गया और उसकी आगे निकलने की तमन्ना वहीं रह गयी। तमन्ना से हमने गाना याद कर लिया- पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाये। 
एक बार विजय नगर चौराहा पार किये तो फ़िर जरीब चौकी ही पहुंचे। एक कुत्ता जरीब चौकी के पहले डिवाइडर के बगल में आराम से बैठा ऊंघ रहा था। हमने उसको छेड़ा नहीं। कौन उसको ड्यूटी पर जाना था।

जरीब चौकी चौराहा पार करते ही फ़िर तो सरपट मार लिये। कोई आगे धीरे चलते दिखा तो पों, पों करते हुये आगे निकल लिये। नहीं हटा तो बायें से फ़िर पों पों किये। एकाध को जगह मिली तो दांये से काट लिये। आगे निकलने के बाद अपने को हड़काया कि गल्त बात है। मन किया सौ रुपये का चालान काटकर दायीं जेब से पैसे निकालकर बायीं में रख लें। लेकिन फ़िर और देरी होती इसलिये मटिया दिये यह इरादा, जुर्माना माफ़ कर दिये।

अफ़ीमकोठी चौराहे पर एक बूढा माता चार छोटे बच्चों को अपने में समेटे सड़क पार करा रहीं थी। बच्चे स्कूल ड्रेस में थे। माता जी खुद चलने में लबढब-लबढब कर रहीं थीं लेकिन बच्चों को पहुंचाने जा रही थीं। सोचा:

खुद के हाल बड़े खस्ता,
लादे हुये हैं बच्चोंं का बस्ता।

सड़क पर कार पर चलते हुये आदमी को बाकी छोटी सवारियों की उपस्थिति अतिक्रमण सरीखी लगती है। लगता है काहे को ये पैदल वाला सड़क पर चल रहा है। तीन लड़के खरामा-खरामा चलते हुये आ रहे थे। हमने सोचा बताओ इत्ती सड़क घेरे चल रहे हैं लड़के। आगे पीछे चलना चाहिये। पंक्तिबद्द होकर। दो लड़कों के बराबर जगह बचती। मतलब कार पर चलता आदमी पैदल चलते हुये आदमी को उसी निगाह से देखता है जिस निगाह से विकसित देश अविकसित देशों को देखते होंगे।

वैसे भी जब साधनसम्पन्न और साधनहीन एक ही राह पर जा रहे हों तो सम्पन्न ,'हीन' के पीछे रहे, यह उसकी बेइज्जती है।

एक रिक्शे पर एक आदमी खूब सारे लोहे के पाइप लादे जा रहा था। वजन ज्यादा था। चढाई पर रिक्शा पीछे न फ़िसले इसलिये उसने रिक्शे से एक रस्सी बांधकर उसको खुद से बांध रखा था। बंधुआ मजूर हो गया था अपने रिक्शे का। आगे चलकर तीन चार और रिक्शे वाले ऐसे ही मिले। एक जगह वे रिक्शा रोके सड़के के किनारे की दुकान पर बैठकर चाय पी रहे थे। कुछ देर के लिये सुस्ताते हुये न जाने क्या सोच रहे होंगे। हम तो यही सोच रहे थे कि वजन बहुत ज्यादा है रिक्शे में।
कुछ बच्चे सड़क किनारे खड़े पतंग उड़ा रहे थे। शायद स्कूल जाना बन्द कर दिया हो बच्चों ने।

हम इस सब सड़क संसार को निहारते हुये जब फ़ैक्ट्री गेट पर गाड़ी की मुंडी घुसाये तो घड़ी ठीक साढे आठ बजा रही थी। मतलब हम आज ’जस्ट इन टाइम’ पहुंच गये दुकान पर।

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