Tuesday, September 20, 2016

इतवार को वृद्धाश्रम

इतवार को वृद्धाश्रम जाने और घोष जी से मिलने का किस्सा बयान किया कल हमने। हम घोष जी के अलावा और भी कई लोगों से मिले वहां। उनके बहाने वृद्धाश्रम के कुछ और किस्से सुनाते हैं आपको।
वहां पहुंचते ही सबसे पहले दफ़्तर में चौधरी जी और गुप्ता जी से मुलाकात हुई। चौधरी जी वहां के दफ़्तर का काम काज देखते हैं। कौन वृद्धाश्रम में आया , कौन गया। किसकी भर्ती होनी है, किसके घर वाले उसको वापस ले जाने आये हैं। आमतौर पर घर वाले कम ही आते हैं लेने के लिये। बड़े घर वाले ही ले जाने के लिये आते हैं ज्यादातर। गुप्ताजी बता रहे थे कि उन्होंने 11 महीने के दौरान 11 मौते देखीं।
गुप्ताजी ने बताया कि नौकरी की शुरुआत उन्होंने आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री से की थी। एक अंग्रेज जिसका नाम मिलर था उसने उनका ब्वायस आर्टीशन का इम्तहान लेने के बाद भर्ती की थी। टाप किया था इम्तहान में। भर्ती के बाद लोहा घिसने में लगा दिया गया। लोगों ने बताया - ’हाथ में ढट्ठे पढ जायेंगे छह महीने में।’ हफ़्ते भर बाद जाना छोड़ दिया नौकरी। कई बार बुलाने के लिये आदमी भेजे मिलर साहब ने लेकिन नहीं गये।
बाद में कई प्राइवेट नौकरी करते हुये ऊंचे पदों पर । एक आंख खराब हो गयी। डाक्टरों ने बताया कि आपरेशन सफ़ल होने पर आंख ठीक होने के 20% चांस है। लेकिन असफ़ल रहा तो दूसरी की रोशनी भी चली जायेगी। इसलिये नहीं कराया।
अस्सी पार के गुप्ता जी उमर और चुस्ती से साठ से भी कम दिखते हैं। बाल भी सफ़ेद नहीं। कभी डाई नहीं किया । बताया कि चालीस के आसपास कनपटियों के पास के कुछ बाल जो सफ़ेद होना शुरु हुये थे वे भी बाद में काले हो गये।
गुप्ता जी का बच्चा अपनी मां के साथ गुड़गांव रहता है। पत्नी के रहते अकेले कैसे रहते हैं वृद्धाश्रम में पूछने पर गुप्ता जी ने बताया-" यहां डा. अग्रवाल हैं उनके पास इलाज चलता है उनका। सब बीमारियों के लिये एक डाक्टर हैं। जबकि गुड़गांव में हर बीमारी के लिये अलग डाक्टर के पास जाना पड़ता है। घर वालों से बात होती रहती है। बेटा कहता है ’जब आप बताओगे हम आपको ले जायेंगे।’"
गुप्ता जी से मिलकर फ़िर घोष जी के कमरे में गये। छोटे कमरे में घोष जी के अलावा दो और बुजुर्ग रहते हैं। एक गुप्ता जी जिनका जिक्र किया अभी। उनके अलावा एक और गुप्ता जी -गणेश दास गुप्ता रहते हैं। नौघड़ा में प्राइवेट काम करते थे। बिटिया थी उसकी शादी कर दी। उमर अस्सी पार है। दांत नहीं हैं। खाना खाने में घंटो लगते हैं। कई बार निपटने जाना पड़ता है इसलिये खाना खाने में परहेज करते हैं। नहाने बहुत कम हैं। घोष जी मजे लेते हुये बोले-" बनिया आदमी सोचता है वजन कम हो जायेगा नहाने से।"
गुप्ता जी बात करते हुये खाने का समय हो गया। लोग अपने-अपने बिस्तर के नीचे से कटोरी खाने बने हुई थाली लेकर किचन की तरफ़ जाने लगे। हम घोष जी के साथ गुप्ता जी का खाना लेने गये। इसी बहाने किचन सेवा देख लेंगे यह सोचते हुये।
किचन में खाना बंट रहा था। इतवार को एक दम्पति ने अपनी तरफ़ से खाने का इन्तजाम किया था। 5500 से 7500 रुपये तक खर्च होते हैं एक बार के खाने के।
वहीं एक महिला कुर्सी पर बैठी हवा में हाथ हिलाते हुये किन्हीं लोगों पर भयंकर गुस्साते हुये हुये कुछ-कुछ बोलती जा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई वीर रस का कवि हवा में मुट्ठियां भांजते हुये दुश्मन देश को ललकार रहा हो। पता चला कि नगर निगम में अध्यापिका थी अन्नपूर्णा नाम की यह महिला। रिटायरमेंट के समय जो पैसा मिला उसको उसके संबंधी हड़प गये। इसी से विक्षिप्त हो गयी वह महिला।
वृद्धाश्रम के बरामदे में पड़े पलंग पर बैठी यह महिला लगातार कुछ न कुछ बोलती, गुस्से में किसी पर नाराजगी दिखाती से लगती है। पूरे वृद्धाश्रम के सन्नाटे को एक अकेली विक्षिप्त आवाज तोड़ती रहती है।
गुप्ता जी का खाना लेकर हम वापस आ रहे थे तो एक बिस्तर पर खाना खाने बैठी बूढा माता ने रायता लाने के लिये कहा। उनको जो रायता मिला था वह खत्म हो गया था। उनको साथ में मिला राजमा पसंद नहीं था इसलिये खाना रायता से ही खाया। सब्जी छोड़ दी। हमने रायता लाकर दिया तो बगल वाली दूसरी बुजुर्ग महिला ने अपनी लुटिया थमा दी पानी लाने के लिये। वाटर कूलर के पास बहुत फ़िसलन थी। जरा सा चूके तो गये काम से। थोड़ा आगे बर्तन धोये जाते तो फ़िसलन नहीं होती। लेकिन सार्वजनिक स्थान पर काम-काज में अराजकता सहज दु्र्गुण है।
कमरे पर आकर घोष जी से फ़िर बातें हुयीं। उन्होंने बताया-"यहां जो लड़की हमारी देखभाल करती है उसके तीन बच्चे हैं। वीरेन्द्र स्वरूप में पढते हैं। उनको हम पढ़ाते हैं। उसका आदमी भयंकर दारू पीता था। कहीं चला गया। लड़की के स्वसुर आते हैं बहू को देखने। पिछली बार आये थे बहुत मंहगा मोबाइल लाये थे देने के लिये। हमने टोंका कि इतनी कम उमर में इतना मंहगा मोबाइल देने से तो लड़का बिगड़ जायेगा। इस पर वे बोले -अरे नाती है। मांगता है तो दे दिया।"
लौटते समय चौधरी जी बात नहीं हो पायी। वे सोने जा चुके थे। आते समय उनको बता दिया था कि उनके पेंशन के लिये हम पता कर रहे हैं। लेकिन अगर त्यागपत्र दिया जाता है नौकरी से तो शायद पेंशन नहीं मिलती।
आज अभी सुबह जब यह पोस्ट लिख रहे थे तो घोष जी के मित्र दुलाल चटर्जी से बात हुई। वे 2004 में आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री, अम्बाझरी से कार्यप्रबंधक के पद से रिटायर हुये। घोष जी के बारे में बताया -" बचपन में फ़ीलखाने के पास उसके घर हम जाते थे। अकेला लड़का था। खूब दुलार में बिगड़ने जैसा होता है वैसा ही कुछ। जब हम उससे मिलने जाते थे तब वह तख्त पर बैठा रहता था और उसकी मां उसको मोजा-जूता पहनाती थी।"
दुलाल जी ने यह भी कहा-दिलीप घोष एक तरह से स्प्वायल्ट जीनियस है। लेकिन गप्प भी बहुत मारता है। बचपन में हम लोगों से कहता था -हम तुम्हारे ऊपर से हवाई जहाज से उड़कर आये थे। बाद में वह क्राइस्ट चर्च पढने चला गया। हम दूसरी जगह चले गये। संपर्क नहीं रहा। लेकिन घर नहीं बसाया घोष ने। ज्यादा जानकारी और नहीं है उसके बारे में।"
अब दो मित्र मिल गये हैं। इनके बहाने घोष जी के बारे में और बातें पता चलेंगी। फ़िलहाल तो वृद्धाश्रम से 15 लोग मथुरा-वृन्दावन आदि जाने वाले हैं। किसी ने स्पान्सर किया है टूर। घोष जी नहीं जायेंगे। लेकिन गुप्ता जी और चौधरी जी जायेंगे शायद ! मैंने वहां घोष जी का और उस बुजुर्ग महिला अन्नपूर्णा का एक छोटा वीडियो भी बनाया था। वह अलग से पोस्ट करेंगे। अभी इतना ही। बकिया फ़िर कभी।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209135600160588

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