Sunday, November 27, 2016

नये नोट-पुराने नोट



पिछले दिनों पुराने नोट बन्द हुये। नये चालू हुये। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश एक हो गया। मिजोरम से महाराष्ट्र तक पूरा राष्ट्र एटीएम की लाइनों में खड़ा हो गया। सबका उद्धेश्य एक ही, पैसा निकालना। सबकी मंशा एक ही, बस किसी तरह एटीएम पैसा उगल दे। कष्ट सबको था लेकिन लोगों की मंशा में बदलाव नहीं आया। कर्म और विचार से पूरा राष्ट्र एक दिखा। जिस तरह लोग दरभंगा में खड़े थे उसी तरह दिल्ली में, जैसे जबलपुर में सीधे पैरों लाइन में लगे थे वैसे ही जामनगर में अपने पैरों पर खड़े मिले लोग। धर्म, क्षेत्र, भाषा, जातिभेद भूलकर लोग लाइनों में लग गये। नोटबंदी ने लोगों को एकात्म कर दिया। लोगों के शरीर भले अलग दिखे लेकिन ध्येय एक ही - “किसी तरह नोट निकल आयें एटीएम से।“
अद्भुत राष्ट्रीय एकता का मुजाहिरा हुआ नोटबंदी के बाद। सरकार और विपक्ष दोनों जनता की भलाई की चिन्ता में जुट गये। पूरा विपक्ष सरकार के विरोध में फ़ेवीकोल लगाकर साथ खड़ा हो गया। पूरी सरकार विपक्ष के मुकाबले एकजुट हो गयी। जनता अपना भला चाहने वालों से निर्लिप्त एटीएम की लाइन में खड़ी हो गयी। पूरा देश नोटबंदी पर बयान जारी करने लगा। नोटबंदी की परेशानियों के तेज में बाकी समस्याओं की आंखें चौंधियां गयीं। वे सब इकट्ठा शर्मिंदा सी होकर नेपथ्य में चली गयीं। सारे चैनल, अखबार, समाचार नोटबंटी पर बात-बहस करने लगे। पूरा देश नोटबंदी के बहस महासागर में छप्प-छैयां करने लगा। सम्पूर्ण राष्ट्र एटीएम से नोट पाने के एकमात्र ध्येय को पूरा करने में जुट गया। ऐसी दुर्लभ राष्ट्रीय एकता की भावना पर दुनिया के सारे सुख न्यौछावर। ऐसी एकता देखकर हमारे प्रचार से परहेज करने वाले मित्र ने नाम न बताने की शर्त पर सुझाव दिया -“जब भी देश में कभी राष्ट्रीय एकता पर कोई आंच आये, फ़ौरन नोटबंदी लागू कर देनी चाहिये।“
जो बड़े नोट कभी बाजार के बादशाह थे उनके हाल कौड़ी के तीन भी न रहे। जिनको तिजोरियों, तहखानों में छिपाकर रखते थे उनको लोग अवैध बच्चों की तरह कूड़ेदान में फ़ेंककर चलते बने। जिनके बिना बाजार का पत्ता तक न हिलता था वे खुद ही चलने-फ़िरने के मोहताज हो गये। बड़े नोटों के हाल दफ़्तरों के उन बड़े अधिकारियों की तरह हो गये जिनको उनकी बर्खास्तगी के बाद उसी दफ़्तर में घुसने की जगह न मिले जिसमें घुसने के लिये पहले उनकी अनुमति चाहिये होती थी।
नये नोटों के आने में देरी के चलते थोड़ी परेशानी हुई। जानकार लोगों के हिसाब से नोटों के बाजार में आने में देरी का कारण पहले तो यह हुआ कि ’सोनम गुप्ता’ ने नये नोट पर आटोग्राफ़ देने में देरी की। दूसरा और बड़ा कारण यह रहा कि जिनको नोट छापने थे वे बेचारे खुद नोट निकालने की लाइन में लगे थे। गोपनीयता के चलते उनको पता ही नहीं चला कि उनको ही नोट छापने थे। नोटों में छपने में हुई एकाध गड़बड़ी का कारण भी लोग यही बताते हैं नोट का डिजाइन फ़ाइनल करने वाले भी नोट निकालने की लाइनें में लगे थे। धक्कामुक्की में देख ही नहीं पाये और डिजाइन फ़ाइनल कर दिया। जब गलती पता चली तब तक नोट छपकर बाजार में टहलने लगे थे। और बाजार में तो पहुंचकर चाहे आदमी हो या नोट खर्च होना ही उसकी नियति होती है।
नोटबंदी का फ़ैसला देश में कालेधन पर अंकुश लगाने की मंशा हुआ। कालेधन को जैसे ही यह पता चला वह फ़ौरन खूब सारा सफ़ेद रंग खरीदकर ले आया और अपने को पूरी शिद्धत से सफ़ेद करने में जुट गया। जाकर जन-धन खातों के सफ़ेद तालाब में छुप गया, पेट्रोल पम्पों के टैंक में डूब गया, बैंक मैनेजरों को अपना कुछ अंश देकर सफ़ेद वर्दी पहन ली, सर्राफ़ा बाजार में जाकर सलवार-कुर्ता पहनकर फ़ूट लिया, भूखे-नंगों के खातों में जमा हो गया।
युद्धस्तर पर सफ़ेद होने लगा कालाधन। सफ़ेदपोशों के साथ खड़ा होकर ’काले धन’ के खिलाफ़ नारे लगाने लगा। नारेबाजी के बीच जैसे ही मौका मिलता वह सामने खड़े कालेधन को अपने में घसीटकर उसको सफ़ेद कर लेता और उससे भी कालेधन के खिलाफ़ नारे लगवाने लगता। कालाधन सफ़ेद होते ही कालेधन की बुराई में उसी तरह से जुट जाता जिस तरह जनप्रतिनिधि दलबदल करने के बाद पहले वाले दल की बुराई में जुट जाते हैं।
नये नोट के हाल घर में आई संयुक्त परिवार की उस बहू सरीखे हैं जिसकी चुटिया-कंधी की उमर बीतते ही ऐसे घर में शादी कर दी गयी हो जहां आते ही उसकी सास खतम हो गयी हों। हरेक की फ़र्माइश पूरी करते-करते बेचारे के हाल खराब हैं। कुल नोटों की जरूरत का 14% नोट बाजार में मौजूद हैं। बाजार के हाल ऐसे टापर बच्चे जैसे हैं जिसका एन इम्तहान के पहले पूरा सिलेबस और विषय बदल दिया गया हो फ़िर भी आशा की जाये कि वह इम्तहान में टाप ही करे। बेचारे के दिन की नींद और रात के चैन हराम हैं।
इसी बीच खबर आई कि उधर जन्नत में शाहजहां ने धूप में मूंगफ़ली टूंगते हुये औरंगजेब से शिकायती लहजे में कहा - “ तूने मुझे इमारतें बनवाने में फ़िजूलखर्ची के चलते मुझे कैदकर लिया था। अब देख कि मेरा बनवाया हुआ लालकिला अपने देश के लोगों के कितना काम आ रहा है। 500 रुपये के नोट पर कितना फ़ब रहा है लालकिला। कितना अच्छा लग रहा है यह देखकर कि पूरा हिन्दोस्तां मेरी बनवाई इमारत वाली रकम से खरीदकर रहा है। लग रहा है अभी हमारी हुकूमत काबिज है समूचे हिन्दोस्तां में। “
औरंगजेब का मन तो किया अपने अब्बाजान को किसी एटीएम में तब तक खड़ा रखे जबतक 500 रुपये का नोट न निकल आये। लेकिन फ़िर बाप समझकर छोड़ दिया उसने। उसको खर्च के लिये पैसे भी निकालने थे इसलिये चुपचाप एटीएम की लाइन में लग गया।
पुराने नोट नये नोट पर फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी नये नोट निकलने के बाद !

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