Sunday, March 26, 2017

घटिया कविता/व्यंग्य गिरोह


कल रात जब हम सोते हुये एक बढिया सा सपना देख रहे थे। क्यूट एन्ड स्वीट टाइप।हमारे साथ हमारी कविता के कोमल , सुकोमल बिम्ब भी थे। अचानक कुछ ’घटिया कविता गिरोह ' के लोग धड़धड़ाते हुये हमारे सपने में घुस आये और हमको धमकाने लगे। बोले -"खबरदार जो घटिया कविता लिखी। घटिया कविता केवल हमारे गैंग के लोग लिख सकते हैं। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी हमसे घटिया लिखने लिखने की?"
यह कहते हुये वे हमारे तमाम कोमल बिम्बों से मारपीट करने लगे। उनको नोच-नोच कर अधमरा कर दिया। हमने उनसे कहा भी कि भाई जो करना हो हमारे साथ करो लेकिन हमारे मासूम बिम्बों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। लेकिन उन्होंने हमारी एक न सुनी और हमारे सब बिम्बों को मारपीट कर घायल कर दिया। सारे बिम्ब बचाओ, बचाओ चिल्ला रहे थे।
सपने में और भी तमाम लोग हमारे साथ थे। हमने कई लोगों से कहा कि भाई इन बिम्बों को थोड़ी देर अपने पास रख लो । इनको बचा लो। लेकिन किसी ने सहयोग न किया।
एक कवि ने कहा - "मैं तो वीर रस की कविता लिखता हूं। इन बिम्बों का मैं क्या उपयोग करूंगा? कोमल बिम्ब अपने दिमाग में रखूंगा तो हमारी वीर रस की कविता प्रभावित हो जायेगी।"
एक व्यंग्यकार बोला- " इतने मासूम बिम्बों का मैं क्या करूंगा? हमें तो विसंगतियां चाहिये। इनको अपने पास रखूंगा तो लोगों को लगेगा कि समाज में विसंगतियां खलास हो गयीं। हां जब इनकें अच्छे से अंग भंग हों जायें तो दे देना इनका उपयोग कर लूंगा थोड़ा और बिगाडकर।"
एक गीतकार बोला- "फ़िलहाल तो मैं प्रेम कवितायें लिखने में लगा हूं। जिसको पटाने के लिये दण्ड पेल रहा हूं उसको जो पसंद सिर्फ़ वही बिम्ब अपने पास रखता हूं। दूसरे बिम्ब रखूंगा तो उसको कोई दूसरा पटा ले जायेगा। इसलिये अभी तो मुझे माफ़ करो।"
मित्रों, इस तरह हमारे बिम्ब बेचारे सपने में पिटते। मैंने 100 नंबर भी डायल किया लेकिन वहां से भी कोई सहायता नहीं मिली।
अचानक ’घटिया कविता गिरोह’ के एक सदस्य को कोई ’घटिया कविता’ सूझी। हमारे बिम्बों से मारपीट करना छोड़कर वह बोला- "गुरु, एक घटिया कविता सूझी है। इससे घटिया कविता आपने आज तक न सुनी होगी। मुलाहिजा फ़र्माइये।"
फ़िर उसने हमारे बिम्बों से मारपीट स्थगित करके बीच सपने में अपनी घटिया कविता पेश की। कविता वाकई घटिया थी। इतनी कि हमारे घायल बिम्ब तक अपना पिटाई का दर्द भूलकर ताली बजाते हुये , वाह -वाह करने लगे। हमने भी मजबूरन वाह -वाह की। कुछ डर के मारे और कुछ कविता के घटियापने से प्रभावित होकर।
हमारी तारीफ़ सुनकर वह थोड़ा नरम पड़ा। फ़िर पूंछा - कैसी लगी कविता?
हमने कहा-" बेमिसाल, अद्भुत। आजतक इतनी घटिया कविता हमने नहीं सुनी। इतने घटिया बिम्बों का इतना घटिया संयोजन हमने आजतक नहीं देखा। "
कविता की तारीफ़ सुनकर वह भावुक हो गया। पूछा- सच्ची?
हमने मारे डर के कहा -मुच्ची।
इसके बाद तो उन सबका व्यवहार ही बदल गया। उन्होंने हमारे सब बिम्बों को प्यार से सहलाया। मरहम पट्टी की। टॉफ़ी चॉकलेट भी खिलाई। हमारे बिम्ब भी खिलखिलाते हुये उनके साथ खेलने कूदने लगे।
कुछ देर बाद वे जैसे आये थे वैसे ही चले गये। लेकिन जाते -जाते धमकी देते गये-" जो लिखना हो लिखो लेकिन हमसे घटिया कविता लिखने की कोशिश की तो खैर नहीं। सारे बिम्बों की बोटी-बोटी काटकर साहित्य समुद्र में फ़ेंक देंगे। घटिया कविता के इलाके में हमारा और सिर्फ़ हमारा कब्जा रहेगा। किसी आलोचक की हिम्मत नहीं कि किसी और की कविता को हमारी कविता से घटिया टहरा सके। "
वे जा रहे थे तो हमने उनमें से एक को कहते हुये सुना- "गुरु, कविता के घटियापने पर तो अपन का कब्जा हो ही गया। एकछत्र राज्य है। अब व्यंग्य के इलाके में भी धंसा जाये। वहां भी घटिया गैंग का जलवा होना चाहिये। "
हम सिहरने की कोशिश में हिले। इस झटके में नींद खुली। देखा तो सुबह हो गयी थी।
सुना है सुबह का देखा सपना सच होता है। ऐसा क्या? इस सपने का क्या मतलब हो सकता है आपमें से कोई बता सकता है क्या?

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