Monday, July 24, 2017

हम तो रोज आस्तीन के सांप देखते हैं


माल रोड पर बीच सड़क पर साइकलें दिखीं। सोचा--'सड़क खाली है। फिर सड़क जाम का क्या मतलब।'
विपक्षी पार्टी का चुनाव चिह्न होने के नाते यही सोचा कि शायद सड़क जाम का कार्यक्रम हो। लेकिन आगे बढ़े तो देखा दो मेनहोल खुले थे। उनकी मुंडी उतरी हुई अलग रखी थी। जैसे कोई महराजा दरबार के बाद अपना ताज उतारकर सर सहला-खुजला रहा हो। कुछ हुजुरेआला तो इसी बहाने बचे हुए बाल भी नोच लेते हैं।
मेनहोल में सीढ़ी लगी हुई थी। नई नीचे केबलों का जाल बिछा हुआ था। कोई गिरे तो गोद ले लें उसको। केबल के जाल के पहले भी एक सरिया का जाल होता है। जिसके कारण कोई सीधे अंदर गिरने से बच सकता है।
जाल के पहले मेनहोल का ढक्कन तो होता ही है।लेकिन जब आये दिन लोगों के मेनहोल में गिरने-बहने की खबर सुनते हैं तो लगता है यह 'सरिया सुरक्षा जाल' गायब होता होगा। शायद जंग लगकर नीचे गिर जाता हो या फिर कोई स्मैकिया उसको बेंचकर उड़ा जाता हो।
कुछ लोग अंदर घुसे काम कर रहे थे। कोई टेलीफोन की लाइन गड़बड़ थी। हमने बाहर खड़े लोगों से पूछा -'हमारे इधर भी हफ्ता हुआ टेलीफोन, नेट सब गोल है। क्या इसी के चलते खराब है?'
जबाब में जिस तरह केंद्र सरकार के लोग तमाम समस्याओं को राज्य सरकार की बताकर रफा-दफा कर देते हैं उसी तरह उसने बताया कि वह उसी एरिया के लोग देखेंगे।
अंदर काम करने वाले सड़क के नीचे दो मेनहोल के बीच की जगह पर काम कर रहे होंगें। दिखे नहीं। लेकिन उनकी चप्पलों का जोड़ा सड़क से चार फीट नई नीचे अलसाया सा पड़ा था।
बाहर खड़े आदमी से देश-दुनिया के हाल पर चर्चा हुई। साथ ही टेलीफोन विभाग में कम होते लाइनमैनों की संख्या पर बात हुई। टेलीफोन विभाग में लाइनमैन सबसे महत्वपूर्ण होता है। आपने लाइनमैन को पटा लिया तो समझिए काम हो गया।
अम्बानी का जियो अगर टनाटन पसर रहा है तो इसका मतलब उसमें लाइनमैन चाहिए नहीं होगा। बीएसएनएल में लाइनमैन कम होते जा रहे हैं और सेवाएं चौपट।
इस बीच अंदर घुसे आदमी ने हांक लगाकर बाहर खड़े आदमी से 'मसाला पुड़िया' की मांग की। सप्लाई के बाद काम आगे बढ़ा होगा।
हम वहां खड़े थे तब तक देश के दो नौनिहाल टुकनिया में सांप धरे उधर नमूदार हुए। सावन के महीने में 'सर्प दर्शन'
करा रहे थे। हमने देखा नहीं। वे जिद पर अड़ गए। मन किया कह दें -'हम तो रोज आस्तीन के सांप देखते हैं।' लेकिन सुबह-सुबह झूठ बोलने का मन नहीं हुआ। हमको तो आजकल अपनी आस्तीन में कोई सांप नहीं दिखा। जिसको दिखा होगा वे जानें।
फिर भी कुछ पैसे देने की जिद बच्चे करने लगे। गोया सौदा कर रहे थे - ' देव नहीं तो दिखा देंगे सांप।' बिगड़कर यही अंदाज आक्रामक होकर जनसेवकों में बदल जाता है जो गाहे-बगाहे समाज सेवा, देश भक्ति की धमकियां देते हैं।
हमने भी ताव में आकर पर्स निकाला लेकिन संयोग कि उसमें सौ रुपये से कम कोई था नहीं। बच गए। अंदर से नोट भी फुसफुसाए होगे -' जाको राखै साईंयां, निकाल सके न कोय।'
बालक लोग बोहनी कराने आगे बढ़ गए। हम भी चल दिये। आगे के मोर्चे हमको आवाज दे रहे थे। 

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